Jagateraho

आत्महत्या क्यों ?

इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी ?

क्योकि तुम्हारे तथाकथित धर्म या सम्प्रदाय में कुछ तो कमी है की जिसके कारण पूरी दुनिया धार्मिक है फिर भी पूरी दुनिया भर में आत्महत्या हो रही है तुम यह जानकर हैरान होंगे की हमारी दुनिया में हर ४० सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है ! हर वर्ष पूरे विश्व में 8 लाख व्यक्ति आत्महत्या करते है ! दुनिया भर में ज़्यादातर व्यक्ति मानसिक बीमारी में ग्रस्त है !! और तक़रीबन-तक़रीबन हर एक व्यक्ति राग,द्वेष,लोभ,दम्भ से ग्रस्त है ! बचपन तो खेल कूद में बीत जाता है यौवन में होश किसे रहता है 14 वर्ष में कामवासना आ घेरती है अगले 14 वर्ष में कामवासना अपने शिखर पर होती है यानि 28 वर्ष पर लेकिन अगले 14 वर्ष पूरे होते होते कामवासना समाप्त हो जाती है और हो ही जानी चाहिए यानि 42 वर्ष में जाकर कंही मनुष्य को होश आता है कि उसने अभी तक जीवन में पाया ही क्या है कुछ रुपये कार घर बैंक बैलेंस और तो कुछ भी नहीं। तब भीतर से खली पन काटता है उस समय मनुष्य तनाव में आ जाता है उस समय अगर मनुष्य को कोई ऐसा गुरु न मिले जो कि उसे सही धर्म सीखा सकता हो तो ही मनुष्य भीतर से संतुष्ट होता है अन्यथा तो तुमने देखा होगा कि यंहा धार्मिक दिखने वाला व्यक्ति भी अशांत ही होता है तुम अपने धर्म गुरुओ को देख सकते हो तुम स्वयं को देख सकते हो।  अगर तुम्हारे धर्म ने तुम्हे यही सुखी , शांत नहीं किया तो वो धर्म ही नहीं है।

लेकिन आज हुआ क्या है आज धर्म मदारियों के हाथो में चला गया है इसी कारण जो सही अर्थो में धार्मिक है या जो धर्म को जानते है वो सभी धर्म से अपने को दूर किये हुए है क्योकि जो जो धर्म के साथ खड़े है वो सभी तो आज पाखड़ को लिए खड़े है फिर वो चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम , सिख हो या ईसाई।  सभी तो केवल तमाशा ही कर रहे है कोई सितार बजा कर धर्म का डंका बजा रहा है कोई धयानलिंगा बना कर लोगो को गुमराह कर रहा है कोई किताबो की कथा सुना रहा है तो कोई भजन गाकर देवी देवता की तरह सजा धजा कर लोगो से दान लूट रहा है।

इसलिए ही आज सही अर्थो में धार्मिक मनुष्य धर्म के साथ नहीं खड़ा है।

धर्म कोई हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बौद्ध जैन पारसी होने का नाम नहीं है धर्म तो नाम है तुम्हारे भीतर की कली के खिलने का। लेकिन तुमने धर्म को केवल हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बौद्ध जैन पारसी होने को ही समझ लिया है

जैसे ही कोई मनुष्य सही अर्थो में धर्म को जानता है परमात्मा का साक्षात्कार कर लेता है तो वो भीतर से ही उस परमात्मा से भर जाता है और जो भीतर से परमात्मा से शांति से प्रेम से भरा हो वो कंही आत्महत्या करेगा।  नहीं।

आत्महत्या का मुख्य कारण है कि मनुष्य का स्वयं को ये दिखना कि वो अभी भी भीतर से खाली है कुछ भी उसके पास ऐसा नहीं है जो मूल्यवान है बस यही बात उसे आत्महत्या की और ले जाती है।

मैं तुम्हे वही धर्म सीखा रहा हूँ मैं तुम्हे हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बौद्ध जैन पारसी नहीं धार्मिक बनाना चाहता हूँ।  अगर यही इसी जीवन में सुखी शांत प्रेमी होना चाहते हो तो यही सीख लो वर्ना पूरा जीवन अशांत ही रहो और मूर्खता भरी बातो पर विश्वास करो की इस दुनिया के बाद कोई और दुनिया में तुम सुखी हो जाओगे।

तुमने सुन ही रखा होगा कि अगर घर से खाली पेट जाओ तो बहार भी कोई खाने को नहीं पूछता उसी प्रकार यंहा से अगर दुखी ही जाओगे तो आगे भी दुखी ही रहोगे तुम्हे कंही भी सुख न मिलेगा।  मैं तुम्हे यही सुखी होने की कला सिखाता हूँ।

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