Dhram ki Dukan :लो खुल गयी एक ओर धर्म की दुकान

Dhram ki Dukan :लो खुल गयी एक ओर धर्म की दुकान

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एक ने प्रश्न किया कि क्या आप एक और धर्म की दुकान (Dhram ki Dukan) खोलने का प्रयास कर रहे हैं ? अगर तुम्हारे महात्माओं से यह प्रश्न किया जाए तो उठकर भाग जाएंगे. धर्म की दुकान खोलने को लेकर जो प्रश्न किया गया उसका उत्तर भी सुन लो. मैं कोई नयी दुकान नहीं खोल रहा हूं बल्कि मैं पुरानी दुकानों को बंद करवाना चाह रहा हूं. सभी धर्मों की…मुझे दुकान की आवश्यकता ही नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि मैं अच्छी लाइफ जीता हूं. मैं एक अच्छा बिजनेसमैन हूं. अच्छे पैसे कमाता हूं. तो कौन दो-दो रुपये के लिए थाली घुमाए…

ना मंत्र,ना दीक्षा, ना दान,ना दक्षिणा (Dhram ki Dukan)

हां…. अगर मैं अनपढ़ होता या भिखारी होता तो ऐसा ही करता. मजबूरी थी क्योंकि मुझे जीवन यापन तो करना था. मैं कोई दुकान खोलने का प्रयास नहीं कर रहा हूं. इसलिए मेरी बेवसाइट पर साफ-साफ लिखा है….ना मंत्र,ना दीक्षा, ना दान,ना दक्षिणा, ना चरणस्पर्श, ना कोई डोनेटर…कोई नहीं…केवल शुद्ध और बुद्घ ज्ञान…सीधा साधा ज्ञान…तुम सुनों और मुक्त हो जाओ. तुम समझो और बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाओ. तुम समझो और प्रज्ञावान हो जाओ. तुम समझो और इसी जीवन में जीते जी स्वर्ग का अनुभव कर लो. मुक्ति का और मोक्ष का अनुभव कर लो.

मेरा दुकान खोलने का कोई इरादा नहीं

कुछ को तो अभी भी लगेगा कि मैं गलत कर रहा हूं. हजारों लोग कमेंट करते हैं. लेकिन ऐसा करने वाले सुन लें कि किसी अच्छे बिजनेसमैन ने मुझपर कभी कमेंट नहीं किया कि मैं गलत कर रहा हूं. किसी भी पढ़े लिखे और अच्छे पेशे (Dhram ki Dukan) में रहने वाले ने मुझपर कभी कमेंट नहीं किया. इनलोगों ने कहा कि तुम अच्छा कर रहे हो. हां…लेकिन ये तुम्हारे जो मंदिरों, मस्जिदों, गिरजे, गुरुद्वारे में बैठे हैं या जो बैठना चाहते हैं…कोई हाथ देखकर रोटी खा रहा है. कोई माथा पढ़कर रोटी खा रहा है. कोई घंटी बजाकर रोटी खा रहा है. कोई थाली घुमाकर रोटी खा रहा है. वो जरूर आते हैं. ये लोग कहते हैं कि मैं गलत कर रहा हूं. तो मेरा दुकान खोलने का कोई इरादा नहीं है.

तुम्हारा स्वर्ग तो यहीं है (Dhram ki Dukan)

मैं किसी भी तरह के मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरुद्वारे, मट्ठ, बनवाने के पक्ष में भी नहीं हूं. ये तुमहीं बनवाओ..तुम्हें ही मुबारक..हजारों धर्म स्थल बन चुके हैं लेकिन क्या तुम सुखी हुए. दुनिया सुखी हुई. अगर तुम सुखी हो गये तो छोड़ दो मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरुद्वारे जाना. क्या स्वस्थ व्यक्ति अस्पताल जाता है. छोड़ो ये स्वप्न देखना कि मरकर स्वर्ग जाएंगे. तुम्हारा स्वर्ग तो यहीं है. मैं जैसे सोचता हूं कि मैं स्वर्ग में हूं. भविष्य के बारे में कुछ नहीं सोचता हूं. अगर तुम सुखी हो गये तो भी छोड़ो और नहीं हुए तो भी छोड़ दो.

आकाल मृत्यु तुम्हारे ही कारणों से होती थी

इतने साल धर्म स्थल तुम्हें सुखी नहीं कर पाये. तुम्हारे शास्त्र तुम्हें बुद्धि नहीं दे पाये. तो अब कहां से हो पाएगा. तो बोध से काम लो. जीवन बड़ा नहीं होता है… मुझे याद है मैं दिल्ली में था. पहले आरटीओ के बड़े से स्क्रीन में लिखा नजर आता था कि आज रोड एक्सिडेंट में 15 आदमी मरे या 20 आदमी मरे…अब वहां स्क्रीन नहीं है. अब अखबार में बड़े मुश्किल से कोई खबर आती है कि रोड एक्सिडेंट में कोई मर गया. ये चमत्कार इसलिए हुआ क्योंकि कानून व्यवस्था टाइट हो गयी. मनुष्य बुद्धिमान हो गया. कुछ कानून के डर से…कुछ बोध द्वारा…लोग तमीज से गाड़ी चलाने लग गये. आकाल मृत्यु तुम्हारे ही कारणों से होती थी ना…

मैं यहीं लाकर तुम्हें खड़ा कर रहा हूं कि अपने बोध से निर्णय लेकर कार्य करोगे तो यही होगा. अपने बोध से…सोच के..आंखे खोलकर…तो मैं कोई दुकान नहीं खोल रहा हूं…बल्कि मैं दुकानें बंद करवाने को प्रयास कर रहा हूं. उन सभी की जो-जो तुमने चलायी है.

आज केवल इतना ही…शेष किसी और दिन…अंत में चारों तरफ बिखरे फैले परमात्मा को मेरा नमन…तुम सभी जागो…जागते रहो…