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Sawan 2022:ईश्वर कण-कण में है, सावन में शिव की पूजा करने से पहले खुद से करो ये सवाल

धर्म वस्त्र नहीं आत्मा बदलने का नाम है

ईश्वर कण-कण में है, सावन में शिव की पूजा करने से पहले खुद से करो ये सवाल

Sawan 2022: सावन का माह या सावन का महीना (Sawan Month 2022) हिंदू धर्म में अत्यंत विशेष महत्व रखता है. लेकिन क्या आप जानते हैं परमात्मा पूजा-पाठ करने को लेकर क्या विचार रखते हैं. तो आइए आपको हम विस्तार से बताते हैं. एक ने परमात्मा से पूछा तुम क्यों कहते हो कि पूजा से कोई लाभ नहीं होता है ? पूरी दुनिया तो पूजा करती है तो कैसे मानें कि पूजा से कोई लाभ नहीं होता है.

परमात्मा ने बहुत ही सरल भाषा में उत्तर दिया कि स्वंय से पूछो तुम्हे क्या लाभ हुआ ? अपने घर के बड़ों से पूछो उन्हें क्या लाभ हुआ ? और ईश्वर की पूजा?…….. नहीं……….

इबादत का मतलब होता है प्रेम……..!

ईश्वर से प्रेम करना सीखो. खुद से प्रेम करो. पूजा यानी बहुत दूर का नाता (Sawan 2022)………..

किसकी पूजा?    …….. कब करते हो तुम पूजा?…….. जब तुम्हे लगे कि तुम जिसकी पूजा कर रहे हो…वो दूर किसी अंतरिक्ष पर सातवें आसमान पर विराजमान है….. और प्रेम !…….प्रेम तो हमेशा उसी के साथ होता है जो सामने खड़ा है, जो बगल में बैठा है…… पत्नी से प्रेम करते हो तुम ? …………अगर तुम्हारी पत्नी चांद पर विराजमान हो जाए तो प्रेम कर पाओगे उससे ? प्रेम हमेशा उससे किया जाता है तो सामने हो……………तुम्हारे नजदीक हो.

शिव को खुद से कितनी दूर बैठाना है सोचो जरा (Sawan 2022)?

सावन (Sawan 2022 ) में शिव की पूजा करने से पहले तुम खुद सोच लो कि तुम्हें परमात्मा को या यूं कहें कि ईश्वर को अपने से कितना दूर बैठाना है. सातवें आसमान पर या अपने साथ?……….और साथ होगा तो प्रेम होगा……. इबादत नहीं होगी…….. पूजा नहीं होगी. केवल प्रेम होगा. पूजा यानी क्या ?……….जरा देखो अपनी सारी आरती और प्रार्थनाओं को उसमें है क्या ? केवल मक्खन लगाने की बातें नजर आएंगी. इसका मतलब है कि तुमने परमात्मा को ऐसा बना दिया कि तुम्हारी चापलूसी भरी बातों से प्रसन्न होगा…………. यदि ऐसा ही है परमात्मा तुम्हारा…………. तो वो परमात्मा नहीं है. वो तो तुमने किसी व्यक्ति के गुण उसमें आरोपित कर दिये.

खुद से ये सवाल !

सावन में पूजा करने से पहले खुद से ये सवाल करो

इस सावन (Sawan 2022) पूजा करने से पहले ये बात ध्यान देना कि क्या सूरज, चांद, तारे, नदियां, वृक्ष, प्रकृति ये किसी भी प्रकार की चापलूसी से प्रसन्न होतीं हैं ? या इनकी कोई पूजा ना करे तो द्वेष करतीं हैं?

नहीं !……… प्रकृति का इन चापलूसी भरी बातों से कोई लेना-देना नहीं होता है. उसी प्रकार ईश्वर का तुम्हारी चापलूसी भरी बातों से कोई भी तो लेना देना नहीं है. क्योंकि मनुष्य चिकनी-चुपड़ी बातें अपने लिए सुनना पसंद है. तो उसने वही आरोपित कर लिया परमात्मा में …… वरना पूजा नहीं करनी थी. केवल प्रेम करना था और किसके साथ………विराट के साथ……..परमात्मा के साथ………वो परमात्मा जो कण-कण में विराजमान है. वो खुदा जो जर्रे-जर्रे को महका रहा है. क्या उसके साथ प्रेम करने के लिए मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे या गिरजा की आवश्यकता है ? ……कहीं भी तो नहीं…

ईश्वर कण-कण में है!

सावन में शिव (Sawan,Shiv) की पूजा करने से पहले यह बात जान लो यदि ईश्वर है तो वो कण-कण में है. तो कहां उसका मंदिर बनवाओगे?. वो धरा कहां से ढ़ूंढोगे कि यही मंदिर बनाने के लिए उतम जगह है?. क्योंकि तुम्हारा शिव या ईश्वर तो कण-कण में है और जब वह कण-कण में है तो कोई भी भूमि या जमीन खराब कैसे हो सकती है.

और दूसरी तरफ वो नहीं है, तो कहीं भी नहीं है. फिर उसका मंदिर बनाने की जरूरत क्यों है. यदि मंदिर का निर्माण कर भी लिया तो उसमें परमात्मा लाकर कहां से बैठाओगे. हां… बुजुर्गों को एकत्रित कर लो तो वो पत्थर की मूर्ति बैठा देंगे. ये दो-चार मंत्र पढ़कर प्राण प्रतिष्ठा का दावा कर लेंगे. दावा करेंगे कि प्राण प्रतिष्ठा का कर्म पूरा हुआ. लेकिन जरा सोचो क्या प्राण प्रतिष्ठा हो पायी क्या वो पत्थर की प्रतिमा जीवित हो गयी ?.

परमात्मा यानी तुम्हारा जीवन!

जिस विराट ने हमें जन्म दिया जिसकी वजह से हम धड़क रहे हैं. क्या उसमें प्राण हम ही फूंकेंगे ? जिसकी वजह से तुम और मैं…….या यूं कहें पूरी दुनिया चल रही है. उसको हम चलाने का दावा करते हैं. उसको हम खिलाने का दावा करते हैं. उसके नाम का प्रचार-प्रसार हम करने का दावा करते हैं. दस बार इन बातों पर विचार करो. हंसी आएगी अपनी ही मूढता पर…….कि हम आखिर कर क्या रहे हैं. जब प्रेम करोगे परमात्मा (Parmatma ,Parmatmana ) से परमात्मा यानी तुम्हारा जीवन…….परमात्मा का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष से नहीं है. परमात्मा का अर्थ है जीवन यानी तुम्हारा जीवन और जिस दिन तुम अपने जीवन से प्रेम करोगे उसी क्षण तुम समस्त संसार के जीवन से प्रेम करने लगोगे. क्योंकि अभी तो तुमने अपना जीवन ही नहीं देखा है. अभी तो तुमने स्वंय को भी नहीं देखा. आंख बंद करके बैठे हो…

जीवन पूजा करने से समझ नहीं आता !……

कोई हिंदू के घर पर पैदा हो गया तो खुद को हिंदू मान रहा है. कोई मुस्लिम के घर पर पैदा हो गया तो खुद को मुस्लिम मान रहा है. कोई सिख… तो कोई ईसाई! …………किसी ने खुद को देखा ? जिन्होंने भी खुद को देखा..चाहे वो कृष्ण हो या बुद्ध, महावीर, नानक, कबीर, जीसस, मोहम्मद………. उन्होंने दूसरे की स्थिति होने पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया कि दूसरा कोई है ही नहीं……..यहां एक ही है बस……..वही एक…….. चाहे उसे मैं कहो या जीवन कहो…उसे परमात्मा कहो……उसे खुदा कहो……या उसे तू कहो ……

उस स्थिति को उपलब्ध व्यक्ति.. चाहे उसे वह निर्वाण कहे……. चाहे मोक्ष…….. चाहे मुक्ति या परमपद कुछ भी…….

वो स्थिति पानी है और उसी स्थिति को पाने का नाम जीवन है. जीवन को समझना है. जीवन पूजा करने से समझ नहीं आने वाला …… पूजा करने से आत्म साक्षात्कार नहीं हो सकता. यदि हो सकता तो तुम्हारे मंदिरों के पुजारी और पंडों को पहले ही हो गया होता.

स्वंय देखो उनकी आंखों में……..झांकों उनकी आंखों में……..क्या हुआ किसी को भी कुछ हुआ , कुछ घटा उनके भीतर ?

…मैं उस तत्व की बात कर रहा हूं जिसका नाम है Enlightenment जिसके बारे में गीता में कृष्ण ने कहा प्रज्ञावान…….बुद्धत्व को उपलब्ध…….जागृत…… मैं उसकी बात कर रहा हूं. और तुम्हे धीरे धीरे उसी पथ पर ले जा रहा हूँ !

आज इतना ही ! अंत में चारों तरफ बिखरे फैले परमात्मा को मेरा नमन…तुम सभी जागो…जागते रहो…

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