Jagateraho

तुम अपने ही जैसे के प्रति आकर्षित होते हो।

तुम्हारा दृष्टिकोण क्या है यह इस बात से दिख जाता है कि तुम किसके प्रति आकर्षित होते हो ‘तुम किसमे कौन सा गुण  देखते हो। 

ध्यान से देखना जो धन का लोभी होगा वो उसी के प्रति आकर्षित होगा जो वैरागी  दिखता हो।  हाँ केवल दिखता होयही मैंने कहाँ। असल में जो बैरागी होगा उसके प्रति तुम आकर्षित नहीं होते -सोचो एक गरीब सड़क पर बैठा है दो -चार रूपए मांग कर खा पी लेता है क्या तुम उसकी और आकर्षित होते हो। नहीं !तुम उसकी और आकर्षित नहीं होते क्योकि तुम्हारा मन गरीब रहने में नहीं वैरागी होनेमें नहीं है तुम्हारा मन तो इस बात में है कि तुम कैसे यह गुण सीख लो कि धन के रहते हुए कैसे वैरागी होना दिखाया जा सकता है। हाँ सारे धन के लोभी वैरागी ही दिखने की कोशिश करते रहते है। तुम एक दृष्टान्त सुनो।  एक बार एक तांत्रिक को पुलिस पकड़ कर ले गई मुकदमा दर्ज हुआ अदालत में जज ने तांत्रिक दिनेश से कहा ! तुम्हे शर्म भी नहीं आती हर बार तुम यंहा पुलिस द्वारा यंहा लाये जाते हो।  मैं तुम्हे हर बार 10 दिनों के लिए जेल भेज देता हूँ फिर तुम बाहर जाकर किसी और पर तंत्र मंत्र कर उससे रूपया लूटते हो और फिर पकडे जाते हो। और फिर तुम्हे मेरे पास लाया जाता है मैं फिर तुम्हे जेल भेज देता हूँ।  यही कार्य हर बार होता है।  तुमने जेल जाकर कुछ भी नहीं सीखा ? दिनेश तांत्रिक बोला! हाँ श्रीमान सीखा तो है लकिन इस बार गलती हो गई ! जज बोला चलो अच्छा है तुम कुछ तो सीखे।  लगता है तुम सुधर गए , तुमने अपनी गलती मान ली।  चलो बताओ तुमने क्या सीखा ! क्या बदलोगे स्वयं में।  दिनेश तांत्रिक बोला मैंने यह सीखा कि अबकी बार जब मैं किसी को सम्मोहित कर उसका रूपया लूटूँगा तो ये भी ध्यान रखूँगा कि उसे ये भी ज्ञात न रहे कि मेरा नाम क्या था और मेरा चेहरा क्या था।

अब बताओ क्या सीखा दिनेश तांत्रिक ने।  बिलकुल यही हाल है तुम्हारा।  तुम्हारे भीतर लोभ है तुम वैरागी दिखने वाले के पांव इसलिए नहीं छूते कि वो वैरागी है या तुम वैरागी होना चाहते हो बल्कि तुम तो पांव इसलिए छूते हो कि तुम चाहते हो कि तुम भी वो कला उससे सीख लो कि ऊपर ऊपर से तुम भी वैरागी दिखो और भीतर भीतर से तुम भी धन इकढ्ढा कर सको। और यही तो होता है।  जरा देखो अपने अपने धर्म गुरुओ के जीवन पर।

जब भी कोई बहरूपिया मरता है तो उसके बिस्तर के नीचे से कई किलो सोना चांदी डॉलर या उसके नाम पर कई हज़ार करोड़ की संपत्ति और अन्य बहुत कुछ मिलता है। 

यह क्या है यह ऊपर ऊपर का ही तो वैराग्य है यह दिखावे का ही तो वैराग्य है और तुम यह मत समझ लेना की यह किसी एक नाम की कहानी है।  नहीं ! तुम किसी भी मंदिर मस्जिद गिरजे गुरूद्वारे या किसी भी महात्मा को ले लो उसका बैंक बैलेंस चेक करो तो पाओगे कि तुम्हारे देश के सारे धनपति भी पीछे हो जायेंगे और तुम्हारे धर्म स्थल आगे हो जायेंगे। 

कैसे वैराग्य है ये? और ध्यान से देखना यही तो तुम सीखने जाते हो और इसीलिए तो तुम उसके चरण छूते हो।

एक और सूक्त है ध्यान से देखना।  तुम जिससे प्रभावित होते हो उससे भीतर ही भीतर तुम घृणा भी करते हो और उसी के जैसा तुम बनना भी चाहते हो।  ध्यान से देखना जो वैरागी होना चाहता है उसे कंही से वैरागी होना सीखना पड़ता है क्या?

तुमने अपने ऊपर धन लादा है प्रतिष्ठा लादी है – पहले से थोड़े ही मिली थी क्या ?  तुम्ही ने ऊपर से लादी है उतार फेंको तो तुम वैरागी ही वैरागी हो।  तुमने ही सभी कुछ लादा है।  वैरागी अगर वास्तव में वैरागी ही होता तो वह दावा करता क्या ? कि वो वैरागी है।  नहीं ! क्योंकि दावा होते ही तो वैराग्य खंडित हो गया वंहा दावा करने वाला उपस्थित हो गया।  वंहा वैरागी होने की उपाधि आ गई।  दावा वही करता है जिसके पास वो वस्तु नहीं होती। जैसे हिन्दुओ में ब्रामण दावा करते है कि वो उच्च है और बाकि निम्न।

लकिन ध्यान से देखना ब्रामण होने का जो दावा करते है उन्हें तो ब्राम्हण होने का अर्थ भी नहीं ज्ञात। ब्राम्हण वो होता है जो ब्रम्ह को जान ले और जो ब्रम्ह को जान ले वो तो एक ही बात कहता है कि यंहा ब्रम्ह ही ब्रम्ह है परमात्मा ही परमात्मा है।  एक ही है दूसरा कँहा है संसार कँहा है।  तुम कहते हो परमात्मा कँहा है ब्रम्ह को जानने वाला कहता है संसार कँहा है।  ब्रम्ह को जानने वाला ही ब्राम्हण कहलाता है और वो दावा नहीं करता कि वो ब्राम्हण है।  और जो भी तुम्हे ब्राम्हण होने का दावा करता दिखे मानना कि उसे अभी तक ब्रम्ह का अनुभव ही नहीं हुआ है।

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