Jagateraho

What is Dharm :क्या हिन्दू मुस्लिम होना ही धर्म है ? जानें परमात्मा ने क्या कहा

एक ने प्रश्न किया कि परमात्मा तुम कहते हो कि तुम्हारा ये तथाकथित (What is Dharm)धर्म हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध ना हो तो समाज सुंदर हो जाएगा. कैसे मानें…हम क्यों ना मानें कि समाज उपद्रवी हो जाएगा. कैसे मानें….इसके लिए तो तुम्हें प्रयोग करना होगा. एक दस वर्ष का बच्चा…उसे तुम नदी में उतारो. वो तैरना नहीं जानता तो कुछ दिन ऐसा करने से वो तैरना सीख जाएगा. यदि तुम इस उदाहरण को नहीं मानते तो तुम रोज अपने बच्चे को स्कूल भेजते हो…तुम कैसे मान लेते हो कि वह पढ़-लिख जाएगा. प्रयोग करने से ही सब होता है.

पहला दृष्टांत (What is Dharm)

अब मैं तुम्हें एक नया दृष्टांत दिखाता हूं. इसे तुम अनुभव करो. सोचो हमने चारों ओर एक पार्क में साउंड सिस्टम लगाये हैं. इसमें वो गाने बज रहे हैं जो बच्चों को अच्छे लगते हैं. वहां आइस्क्रीम, चॉकलेट के काउंटर हैं. बर्गर और टिक्की के भी हैं जो बच्चों को पसंद हैं. वहां हजारों बच्चे हैं. ज्यादा से ज्यादा पांच वर्ष के बच्चे इसमें शामिल हैं. न्यूनतम आयु बच्चों की 3 वर्ष है. चारों ओर से गाने बज रहे हैं. सभी बच्चे वहां हुड़दंग मचा रहे हैं और खाते हुए गाने का आनंद ले रहे हैं.

दूसरा दृष्टांत

अब मैं तुम्हें दूसरे चित्रण में लेकर चलता हूं. अब तुम इनमें से ढाई सौ बच्चों को हिंदू की ड्रेस पहना दो. जैसे धोती-कुर्ता, जनेऊ, भगवा इत्यादि…अब ढाई सौ बच्चों को मुसलमान की ड्रेस पहना दो. अब ढाई सौ बच्चों को सिख बना दो…अब ढाई सौ बच्चों को ईसाई….अब साउंड सिस्टम में कहीं मंत्र चला दो तो कहीं कुरान की आयते…कहीं शबद…तो कहीं बाईबल की लाइनें…अब जो वहां बच्चों के खाने की चीजें थीं. उनकी जगह प्रसाद रख दो…अपनी अपनी धर्मों की.

दोनों चित्रण की तुलना (What is Dharm)

अब दो चित्रण तुम्हारे पास हैं. अब खुद देखो कौन सा चित्रण तुम्हें अच्छा लगेगा. वो बच्चे जो हजारों में थे या वो बच्चे जो तुमने बनाये…अपनी मूर्खता के कारण…किसी को हिंदू तो किसी को मुसलमान…किसी को सिख तो किसी को ईसाई…किसी को बोद्ध तो किसी को जैन…स्वंय निर्णय करो कि कब बच्चे खुश होंगे…. पहली वाली स्थिती में या दूसरी वाली स्थिति में…मैं फिर दोहराता हूं कि यदि इस दुनिया में धर्म नहीं होते…हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध नहीं होते…गीता ,कुरान ,बाईबल ,ग्रंथ नहीं होते तो दुनिया वाकई में बहुत खूबसूरत होती. लोग एक दूसरे से प्रेम करते…बिना किसी द्वेष के…तुम्हें क्या लगता है कि तब कोई धर्म नहीं होता दुनिया में…किसी का बुद्धत्व नहीं जागता…कोई ज्ञानवान नहीं होता.

किताबें नहीं थीं. फिर भी तो धर्म का फूल खिला

तुम्हारे जिन-जिन ऋषी मुनियों ने धर्म की किताबें लिखी. उनके अंदर जो धर्म का प्रद्भाव हुआ वो कहां से हुआ. यानी उससे पहले जो धर्म की किताबें नहीं थीं. किताबें नहीं थीं. फिर भी तो धर्म का फूल खिला…यही तो मैं तुम्हें सिखा रहा हूं कि यदि तुम भीतर से कड़वाहट निकाल दो..द्वेष को निकाल दो…. तो करुण, प्रेम, दया भीतर से फूटेगा…धर्म भीतर से फूटेगा. तुम खूशबू बिखेरोगे…अभी तो किसी ने यहां चंदन लगा लिया. किसी ने इत्र लगा लिया टोपी जाली पहनकर…अभी तो कहां खुशबू…. अभी तो तुम्हें भी पता है कि तुम्हारे विचारों से दुर्गंध आती है. तभी तो तुम इत्र लगाकर, कोई चंदन, तो कोई तिलक लगाकर अपने आप को महकाने की कोशिश कर रहे हो. ये दुनिया वकई में सुंदर हो जाएगी…

आज केवल इतना ही…शेष किसी और दिन…अंत में चारों तरफ बिखरे फैले परमात्मा को मेरा नमन…तुम सभी जागो…जागते रहो…

Scroll to Top